आपका वचन मेरे पथ का दीया एवं मेरे मार्ग का उजियाला है, राजा दाऊद ने कई सालों पहले कहा। आपके हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, या आपको कोई सा निर्णय लेना पड़े, आप भी दाऊद ही की तरह निश्चित हो सकते हैं। लूईस जेटर वॉकर के द्वारा लिखा और जूडी बारटल के द्वारा रूपांतरित किया गया यह 190 पेजों का पाठ्यक्रम आपका परिचय बाइबल से करवाएगा और उन बातों को समझने में मदद करेगा कि परमेश्वर आपके हालातों को किस प्रकार देखता और माँगने पर मदद करता है।
क्या आप यह सोचकर चकित हुए हैं कि परमेश्वर ने हमें बाइबल कैसे दी है? क्या स्वर्गदूतों ने इसे लिखकर कहीं डाल दिया था कि कोई आकर उसे ढुँढ़ निकाले? परमेश्वर ने जीवन के कई स्तरों में से साधरण व्यक्तियों को चुना और सैंकड़ों वर्षों के समय के दौरान द्वारा हमें इस पुस्तक को दिया जिसे हम बाइबल कहते हैं। उनकी लिखावटों में समानता एवं आपसी सहमति ही उस नही बदलने वाले परमेश्वर की गवाही देते हैं।
बाइबल को भी व्यवस्थित करना जरूरी है ताकि हम उसमें से उन बातों को खोज सकें जो हम चाहते हैं। हमारी बाइबल का प्रकाशक यह जानता है। अनुवाद बदल जाएँ, परंतु वे समान अध्यायों एवं पदों पर केंद्रित रहते हैं ताकि खोजते खोजते स्वयं नही खो जाएँ।
इस अध्याय में हम बाइबल के पदों को कहना और लिखना एवं विषयों तथा पदों के बारे में मूलभूत अध्ययन देने वाली मदद को इस्तेमाल करना सीखेंगे।
हम ऐतिहासिक पुस्तकों को पढ़कर उनके नेताओं के बारे में जान सकते हैं, परंतु पुराने नियम में उन दिनों के आम चलन को दिखाता है। ये कहानियाँ कम महत्व की नही हैं, क्योंकि ये परमेश्वर के लोगों के साथ व्यवहार को दिखाती हैं। पुराने नियम की पुस्तकों को मुख्य रूप से पाँच विषयों में बाँटा जा सकता है। अध्याय 3 में हमने बाइबल के छोटे विभाजनों के बारे में पढ़ा - अध्याय एवं पद। अब हम बड़े विभाजनों और बंटवारे को देखेंगे।
ज्ब नए नियम को लिखा जा रहा था, तो पुराने नियम की तश्वीर काफी बदल चुकी थी। भविष्यद्वक्ताओं के दिन लद चुके थे और कई सारे लोग आत्मिकता से कतई संबंध्ति नही थे। परमेश्वर का अपने पुत्र को इस समय में इस दुनिया में भेजना इत्तफाक नही था। यूनानी भाषा आम भाषा के रूप में प्रचलित थी जिससे कि सुसमाचार को बाँटा जा सके और रोमियों ने सुसमाचार प्रचार के लिए उचित सुरक्षा एवं स्वतंत्राता प्रदान की।
लगभग हर मसीही आज नही तो कल, इस प्रश्न का अवश्य सामना करता है, ‘‘मैं कैसे जानूँ कि बाइबल सच्ची है?'
प्रश्न नया नही है। मनुष्य की प्रथम परीक्षा भी वचन के ऊपर किए गए आक्रमण से शुरू हुई। एक सर्प के रूप में शैतान ने हव्वा से कहा, ‘‘क्या वास्तव में परमेश्वर ने कहा...?'(उत्पति 3:1)आज भी शैतान इसी संदेह का सुझाव देता है, ‘‘क्या परमेश्वर ने सचमुच ऐसा कहा?'